पहेली ! सुनो कविता बुनो कविता !
शिष्य तुम्बी भरके लाना..... तेरे गुरु ने मंगाई,
शिष्य भिक्षा लेके आना गुरु ने मंगाई,
पहली भिक्षा जल की लाना--
कुआँ बावड़ी छोड़ के लाना,
नदी नाले के पास न जाना-तुंबी भरके लाना।
दूजी भिक्षा अन्न की लाना-गाँव नगर के पास न जाना,
खेत खलिहान को छोड़के लाना, लाना तुंबी भरके,
तेरे गुरु ने मंगाई।
तीजी भिक्षा लकड़ी लाना--डांग-पहाड़ के पास न जाना,
गीली सूखी छोड़ के लाना- लाना गठरी बनाके तेरे गुरु ने मंगाई !
चौथी भिक्षा मांस की लाना--जीव जंतु के पास न जाना,
जिंदा मुर्दा छोड़ के लाना-- लाना हंडी भरके
तेरे गुरु ने मंगाई..... शिष्य तुंबी भरके लाना,,
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गुरु, शिष्य की परीक्षा ले रहे हैं चार चीजें मंगा रहे हैं: जल, अन्न, लकड़ी, मांस।
लेकिन साथ ही शर्तें भी लगा दी हैं अब देखना ये है कि शिष्य लेकर आता है या नहीं,
इसी परीक्षा पर उसकी परख होनी है।
जल लाना है, लेकिन बारिश का भी न हो, कुएं बावड़ी तालाब का भी न हो।
अब तुममें से कोई नल मत कह देना या मटका या आरओ कह बैठो तो गलत है
सीधा सा मतलब किसी दृष्ट स्त्रोत का जल न हो।
अन्न भी ऐसा ही लाना है किसी खेत खलिहान से न लाना,
गाँव नगर आदि से भी भिक्षा नहीं मांगनी।
लकड़ी भी मंगा रहे हैं तो जंगल पहाड़ को छुड़वा रहे हैं,
गीली भी न हो सूखी भी न हो, और बिखरी हुई भी न हो,
यानी बन्धी बंधाई कसी कसाई हो।
मांस भी मंगा रहे हैं तो जीव जंतु से दूरी बनाने को कह रहे हैं
और जिंदा मुर्दा का भी नहीं होना चाहिए।
(मांस जीव का भी होता है और मांस फल के गूदे को भी कहते हैं)
अगर हम शिष्य होते तो फेल होते परीक्षा में,
लेकिन यह प्राचीन भारत के गुरुओं द्वारा
तपाकर पकाकर तैयार किया गया शिष्य है।
आजकल के पढ़े लिखों से लाख बेहतर है।
गीत समाप्त होता है लेकिन रहस्य बना रहता है।
गोरख वाणी के इस पद में जो रहस्य है उस रहस्य का तात्पर्य है ........................?
कमेंट में इसका जवाब लिखिए अगर आप समझ गए हैं तो ......
ऐसी ही पहेली, कविता के माध्यम से आप भी बुनिए............और भेजिए