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Saturday, 23 April 2022

विलियम शेक्सपीयर :(William Shakespeare ; 23 अप्रैल 1564 - 23 अप्रैल 1616 )

 विलियम शेक्स्पीयर (William Shakespeare ; 23 अप्रैल 1564 - 23 अप्रैल 1616 ) अंग्रेज़ी के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान नाटककार तथा अभिनेता थे।[1] उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है।[2]

शेक्स्पीयर में अत्यंत उच्च कोटि की सृजनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववांमय की भी अमर विभूति हैं। शेक्स्पीयर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्स्पीयर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं।[3]


जन्मविलियम शेक्स्पीयर
23 अप्रैल 1564
स्ट्रैट्फ़ोर्ड, इंग्लैंड
मृत्युअप्रैल 23, 1616 (उम्र 52)
स्ट्रैट्फ़ोर्ड, इंग्लैंड
स्मारक समाधिचर्च अव़ द़ होली ट्रिनिटी, स्ट्रैट्फ़ोर्ड
व्यवसायकवि, नाटककार
प्रसिद्धि कारणकवितानाटक
जीवनसाथीएनी हाथवे
बच्चेसुसना हाल, ह्याम्नेट शेक्सपियर, उदिथ क्विनेइ
माता-पिताजोन शेक्सपियर, मेरी अर्डेन
अंतिम स्थानचर्च अव़ द़ होली ट्रिनिटी, स्ट्रैट्फ़ोर्ड
हस्ताक्षर
William Shakespeare Signature.svg

कृतियाँ

शेक्सपियर की रचनाओं के तिथिक्रम के संबंध में काफी मतभेद है। सन् १९३० में प्रसिद्ध विद्वान् सर ई.के. चैंबर्स ने तिथिक्रम की जो तालिका प्रस्तुत की वह आज प्राय: सर्वमान्य है। तब भी इधर पिछले वर्षों की खोज से तिथियों के संबंध में कुछ नवीन धारणाएँ बनी हैं। इन नई खोजों के आधार पर मैक मैनवे महोदय ने एक नवीन तालिका तैयार की है जो सर ई.के. चैंबर्स की सूची से कुछ भिन्न है।

लगभग २० वर्षों के साहित्यिक जीवन में शेक्सपियर की सर्जनात्मक प्रतिभा निरंतर विकसित होती गई। सामान्य रूप से इस विकासक्रम में चार विभिन्न अवस्थाएँ दिखाई देती है। प्रारंभिक अवस्था १५९५ में समाप्त हुई। इस काल की प्राय: सभी रचनाएँ प्रयोगात्मक है। शेक्सपियर अभी तक अपना मार्ग निश्चित नहीं कर पाए थे, अतएव विभिन्न प्रचलित रचनाप्रणालियों को क्रम से कार्यान्वित करके अपना रचनाविधान सुस्थिर कर रहे थे, प्राचीन सुखांत नाटकों की प्रहसनात्मक शैली में उन्होंने 'दी कामेडी ऑव एरर्स' और 'दी टेमिंग ऑफ दी सू' की रचना की। तदुपरांत 'लव्स लेबर्स लॉस्ट' में इन्होंने लिली के दरबारी सुखांत नाटकों की परिपाटी अपनाई। इसमें राजदरबार का वातावरण उपस्थित किया गया है जो चतुर पात्रों के रोचक वार्तालाप से परिपूर्ण है। 'दी टू जेंटिलमेन ऑव वेरोना' में ग्रीन के स्वच्छंदतावादी सुखांत नाटकों का अनुकरण किया गया है। दु:खांत नाटक भी अनुकरणात्मक हैं। 'रिचर्ड तृतीय' में मालों का तथा 'टाइटस एंड्रानिकस' में किड का अनुकरण किया गया है किंतु 'रोमियो ऐंड जुलिएट' में मौलिकता का अंश अपेक्षाकृत अधिक है। इसी काल में लिखी हुई दोनों प्रसिद्ध कविताएँ 'दी रेप आव् लुक्रीस' और 'वीनस ऐंड एडोनिस' पर तत्कालीन इटालियन प्रेमकाव्य की छाप है।

विकासक्रम की दूसरी अवस्था सन् १६०० में समाप्त हुई। इसमें शेक्सपियर ने अनेक प्रौढ़ रचनाएँ संसार को भेंट कीं। अब उन्होंने अपना मार्ग निर्धारित तथा आत्मविश्वास अर्जित कर लिया था। 'ए मिड समर नाइट्स ड्रीम' तथा 'दी मर्चेंट आव वेनिस' रोचक एवं लोकप्रिय सुखांत नाटक हैं किंतु इनसे भी अधिक महत्व रखनेवाले शेक्यपियर के सर्वोत्कृष्ट सुखांत नाटक 'मच एडो एबाउट नथिंग', 'ऐज यू लाइक इट' तथा 'ट्वेल्वथ नाइट' इसी काल में लिखे गए। इन नाटकों में कवि की कल्पना तथा उसके मन के आह्लाद का उत्तम प्रकाशन हुआ है। सर्वोत्तम ऐतिहासिक नाटक भी इसी समय लिखे गए। मार्लो से प्रभावित 'रिचर्ड द्वितीय' उसी श्रेणी की पूर्ववर्ती कृति 'रिचर्ड तृतीय' से रचनाविन्यास में कहीं अधिक सफल है। 'हेनरी चतुर्थ' के दोनों भाग और 'हेनरी पंचम' जो सुविख्यात ऐतिहासिक नाटक हैं, इसी काल की रचनाएँ हैं। शेक्सपियर के प्राय: सभी सॉनेट जो अपनी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए अनुपम हैं, सन् १५९५ ओर १६०७ के बीच लिखे गए।

तीसरी अवस्था, जिसका अंत लगभग १६०७ में हुआ, शेक्सपियर के जीवन में विशेष महत्व रखती है। इन वर्षों में पारिवारिक विपत्ति एवं स्वास्थ्य की खराबी के कारण कवि का मन अवसन्न था। अत: इन दिनों की अधिकांश रचनाएँ दु:खांत हैं। विश्वप्रसिद्ध दु:खांत नाटक हैमलेटओथेलोकिंग लियर और मैकबेथ एवं रोमन दु:खांत नाटक जूलियस सीजर, 'एंटोनी ऐंड क्लिओपाट्रा' एवं 'कोरिओलेनस' इसी कालावधि में लिखे गए और अभिनीत हुए। 'ट्रवायलस ऐंड क्रेसिडा', 'आल्स वेल दैट एंड्स वेल' और 'मेजर फार मेजर' में सुख और दु:ख की संश्लिष्ट अभिव्यक्ति हुई है, तब भी दु:खद अंश का ही प्राधान्य है।

विकास की अंतिम अवस्था में शेक्सपियर ने पेरिकिल्स, सिंवेलिन, 'दी विंटर्स टेल', 'दी टेंपेस्ट' प्रभृति नाटकों का सर्जन किया, जो सुखांत होने पर भी दु:खद संभावनाओं से भरे हैं एवं एक सांध्य वातावरण की सृष्टि करते हैं। इन सुखांत दु:खांत नाटकों को रोमांस अथवा शेक्सपियर के अंतिम नाटकों की संज्ञा दी जाती है।   और पढ़ें

World Book & Copyright Day: 23 अप्रैल


 आइए जाने  रोचक बातें

 World Book  & Copyright Day   के बारे  में । 

 23 अप्रैल को  है,  कोनसा  दिवस?

 World Book   & Copyright  Day  23rd April को  ही क्यों मनाया जाता है ?

किन लेखकों को दी जाती है, इस दिन श्रद्धांजलि?

 कब हुआ कॉपीराइट एक्ट मे अमेंडमेंट?

जाने कितनी है सजा और जुर्माना कॉपीराइट  का  उल्लघन करने पर? 

और अधिक जानने के लिए:

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KV Students House System:


KVS FOLLOWS FOUR HOUSE SYSTEM




FOR THE PURPOSE OF 

INTER HOUSE COMPETITIONS 

IN THE SCHOLASTIC AND CO-SHOLASTIC AREAS OF EDUCATION.

EACH STUDENT SHOLUD BE AWARE OF HIS / HER HOUSE AND MUST KNOW ABOUT  

 GREAT PERSONALITIES: SHIVAJI, TAGORE, ASHOK AND  RAMAN

विध्यार्थी  हर साल अपने हाउस के बारे में  लाइब्ररी की पुस्तीका मे लिखेंगे ! 

 S........T......... A .......R...........:

Shivaji :Tagore : अशोक: रमन

............................................................................................. 

Shivaji:




Shivaji's portrait (1680s) from the collection of British Museum
Flag of the Maratha Empire.svg 1st Chhatrapati of the Maratha Empire
Reign1674–1680
Coronation6 June 1674 (first)
24 September 1674 (second)
PredecessorPosition created
SuccessorSambhaji
Born19 February 1630
ShivneriAhmadnagar Sultanate
(present-day Maharashtra, India)
Died3 April 1680 (aged 50)
Raigad FortMaratha Empire
(present-day Maharashtra, India)
Spouse
Issue8[4] (including Sambhaji and Rajaram I)
HouseBhonsle
FatherShahaji
MotherJijabai
ReligionHinduism

Shivaji Bhonsale I (Marathi pronunciation:   [ʃiʋaˑd͡ʒiˑ bʱoˑs(ə)leˑ]; c.19 February 1630 – 3 April 1680), also referred to as Chhatrapati Shivaji, was an Indian ruler and a member of the Bhonsle Maratha clan. Shivaji carved out an enclave from the declining Adilshahi sultanate of Bijapur that formed the genesis of the Maratha Empire. In 1674, he was formally crowned the Chhatrapati of his realm at Raigad Fort.

Over the course of his life, Shivaji engaged in both alliances and hostilities with the Mughal Empire, the Sultanate of GolkondaSultanate of Bijapur and the European colonial powers. Shivaji's military forces expanded the Maratha sphere of influence, capturing and building forts, and forming a Maratha navy. Shivaji established a competent and progressive civil rule with well-structured administrative organisations. He revived ancient Hindu political traditions, court conventions and promoted the usage of the Marathi and Sanskrit languages, replacing Persian in court and administration।

Shivaji's legacy was to vary by observer and time, but nearly two centuries after his death, he began to take on increased importance with the emergence of the Indian independence movement, as many Indian nationalists elevated him as a proto-nationalist and hero of the Hindus.

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Rabindranath Tagore:


रबीन्द्रनाथ टैगोर (१९२५)
स्थानीय नामরবীন্দ্রনাথ ঠাকুর
जन्म07 मई 1861
कलकत्ता (अब कोलकाता), ब्रिटिश भारत[1]l
मृत्यु07 अगस्त 1941
कलकत्ता, ब्रिटिश भारत[1]
व्यवसायलेखक, कवि, नाटककार, संगीतकार, चित्रकार
भाषाबांग्ला, अंग्रेजी
साहित्यिक आन्दोलनआधुनिकतावाद
उल्लेखनीय सम्मानसाहित्य के लिए नोबल पुरस्कार
जीवनसाथीमृणालिनी देवी (१ मार्च १८७४–२३ नवंबर १९०२)
सन्तान५ (जिनमें से दो का बाल्यावस्था में निधन हो गया)
सम्बन्धीटैगोर परिवार

हस्ताक्षरClose-up on a Bengali word handwritten with angular, jaunty letters.

Rabindranath Tagore FRAS (Bengaliরবীন্দ্রনাথ ঠাকুর/rəˈbɪndrənɑːt tæˈɡɔːr/ (listen); 7 May 1861 – 7 August 1941) was a Bengali polymath who worked as a poet, writer, playwright, composer, philosopher, social reformer and painter. He reshaped Bengali literature and music as well as Indian art with Contextual Modernism in the late 19th and early 20th centuries. Author of the "profoundly sensitive, fresh and beautiful" poetry of Gitanjali he became in 1913 the first non-European and the first lyricist to win the Nobel Prize in Literature Tagore's poetic songs were viewed as spiritual and mercurial; however, his "elegant prose and magical poetry" remain largely unknown outside Bengal He was a fellow of the Royal Asiatic Society. Referred to as "the Bard of Bengal" Tagore was known by sobriquets: Gurudev, Kobiguru, Biswakobi.

Bengali Brahmin from Calcutta with ancestral gentry roots in Burdwan district[9] and Jessore, Tagore wrote poetry as an eight-year-old.[10] At the age of sixteen, he released his first substantial poems under the pseudonym Bhānusiṃha ("Sun Lion"), which were seized upon by literary authorities as long-lost classics.[11] By 1877 he graduated to his first short stories and dramas, published under his real name. As a humanistuniversalistinternationalist, and ardent anti-nationalist,[12] he denounced the British Raj and advocated independence from Britain. As an exponent of the Bengal Renaissance, he advanced a vast canon that comprised paintings, sketches and doodles, hundreds of texts, and some two thousand songs; his legacy also endures in his founding of Visva-Bharati University.[13][14]

Tagore modernised Bengali art by spurning rigid classical forms and resisting linguistic strictures. His novels, stories, songs, dance-dramas, and essays spoke to topics political and personal. Gitanjali (Song Offerings), Gora (Fair-Faced) and Ghare-Baire (The Home and the World) are his best-known works, and his verse, short stories, and novels were acclaimed—or panned—for their lyricism, colloquialism, naturalism, and unnatural contemplation. His compositions were chosen by two nations as national anthems: India's "Jana Gana Mana" and Bangladesh's "Amar Shonar Bangla". The Sri Lankan national anthem was inspired by his work.[15]


चक्रवर्ती सम्राट अशोक:


शासनावधि269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व
राज्याभिषेक270 ईसा पूर्व
पूर्ववर्तीबिंदुसार
उत्तरवर्तीदशरथ मौर्य
जन्म304 ईसा पूर्व
पाटलिपुत्रपटना
निधन232 ईसा पूर्व
पाटलिपुत्रपटना
समाधि
पाटलिपुत्र
जीवनसंगीदेवी
कारुवाकी
पद्मावती
तिष्यरक्षिता
संतानमहेन्द्र
संघमित्रा
तीवल
कुणाल
चारुमती
घरानामौर्य
पिताबिन्दुसार
मातासुभद्रांगी (रानी धर्मा)

चक्रवर्ती सम्राट अशोक[1] (संस्कृतअशोकः ) (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था। उनका राजकाल ईसा पूर्व 269 से, 232 प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अखण्ड भारत पर राज्य किया है तथा उनका मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश, तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णगिरी पहाड़ी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश, पाटलीपुत्र से पश्चिम में अफ़गानिस्तानईरान, बलूचिस्तान तक पहुँच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का सम्पूर्ण भारतपाकिस्तानअफ़ग़ानिस्ताननेपालबांग्लादेशभूटानम्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट अशोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट है। सम्राट अशोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक' कहा जाता है, जिसका अर्थ है - ‘सम्राटों के सम्राट’, और यह स्थान भारत में केवल सम्राट अशोक को मिला है। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। [2][3] सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध पन्थ का प्रचार किया। सम्राट अशोक के सन्दर्भ के स्तम्भ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते है। इसलिए सम्राट अशोक की ऐतिहासिक जानकारी एन्य किसी भी सम्राट या राजा से बहूत व्यापक रूप में मिल जाती है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में ही दर्ज हो चुका है।

कलिंग युद्ध के दो वर्ष पहले ही सम्राट अशोक [[भगवान बुद्ध]ने था जिससे

से प्रभावित होकर बौद्ध अनुयायी हो गये और उन्ही की स्मृति में उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - में मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बौद्ध मन्दिर बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैण्ड, चीन इन देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़गानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। सम्राट अशोक अपने पूरे जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारे। सम्राट अशोक के ही समय में 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कन्धार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे। ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृट विश्वविद्यालय थे। शिलालेख प्रारम्भ करने वाला पहला शासक बाद में आरम्भ हुआ था। अशोक ने सर्वप्रथम बौद्ध पन्थ का सिद्धान्त लागू किया जो आज भी कार्यरत है।
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चन्द्रशेखर वेंकटरमन


जन्म7 नवम्बर 1888
तिरुचिरापल्लीतमिल नाडु
मृत्यु21 नवम्बर 1970 (उम्र 82)
बंगलुरुकर्नाटकभारत
राष्ट्रीयता भारत
क्षेत्रभौतिकी
संस्थानभारतीय वित्त विभाग
इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस
भारतीय विज्ञान संस्थान
शिक्षाप्रेसीडेंसी कालिज
डॉक्टरी शिष्यजी एन रामचंद्रन
प्रसिद्धिरामन इफेक्ट
उल्लेखनीय सम्माननाइट बैचेलर (१९२९)
भौतिकी में नोबल पुरस्कार (१९३०)
भारत रत्न
लेनिन शांति पुरस्कार

सीवी रामन (तमिल: சந்திரசேகர வெங்கட ராமன்) (७ नवंबर१८८८ - २१ नवंबर१९७०भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष १९३० में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है।[1] १९५४ ई. में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा १९५७ में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया था।

परिचय

चन्द्रशेखर वेंकटरामन का जन्म ७ नवम्बर सन् १८८८ ई. में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्‍ली नामक स्थान में हुआ था। आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस. पी. जी. कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे। आपकी माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। सन् १८९२ ई. मे आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापतनम के श्रीमती ए. वी.एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापक होकर चले गए। उस समय आपकी अवस्था चार वर्ष की थी। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई। वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगति ने आपको विशेष रूप से प्रभावित किया।

शिक्षा

आपने बारह वर्ष की अल्पावस्था में ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। तभी आपको श्रीमती एनी बेसेंट के भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके लेख पढ़ने को मिले। आपने रामायणमहाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया। इससे आपके हृदय पर भारतीय गौरव की अमिट छाप पड़ गई। आपके पिता उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने के पक्ष में थे; किन्तु एक ब्रिटिश डॉक्टर ने आपके स्वास्थ्य को देखते हुए विदेश न भेजने का परामर्श दिया। फलत: आपको स्वदेश में ही अध्ययन करना पड़ा। आपने सन् १९०३ ई. में चेन्नै के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया। यहाँ के प्राध्यापक आपकी योग्यता से इतने प्रभावित हुए कि आपको अनेक कक्षाओं में उपस्थित होने से छूट मिल गई। आप बी.ए. की परीक्षा में विश्वविद्यालय में अकेले ही प्रथम श्रेणी में आए। आप को भौतिकी में स्वर्णपदक दिया गया। आपको अंग्रेजी निबंध पर भी पुरस्कृत किया गया। आपने १९०७ में मद्रास विश्वविद्यालय से गणित में प्रथम श्रेणी में एमए की डिग्री विशेष योग्यता के साथ हासिल की। आपने इस में इतने अंक प्राप्त किए थे, जितने पहले किसी ने नहीं लिए थे।[2]

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