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Refere here for Art and culture of Our Country... Bharat
भारत की संस्कृति बहुआयामी है जिसमें भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। इसके साथ ही पड़ोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है। पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़, भाषाएँ, प्रथाएँ और परम्पराएँ इसके एक-दूसरे से परस्पर सम्बंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं। भारत कई धार्मिक प्रणालियों, जैसे कि सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म, सिंधी धर्म धर्मों का जनक है.
Regarding enlightening the students about the success of the Aditya Mission and highlighting the cultural and solar significance of Makar Sankranti, the following activities, as suggested vide letter referred above, are to be undertaken in Kendriya Vidyalayas on the occasion of Makar Sankranti on January 14-15, 2024 in a befitting manner:
1. To conduct a Workshop or Seminar by inviting Eminent scholar(s) to engage students in discussions and presentations.
2. To conduct traditional dances, songs, and plays associated with the Makar Sankranti festival, incorporating the scientific aspect during the Morning Assembly.
3. To organize art and craft activities related to Makar Sankranti
4. To conduct essay writing themed around the Sun, Makar Sankranti, and the achievements of the Aditya Mission :
Halo-Orbit Insertion of Aditya-L1 Successfully Accomplished (isro.gov.in)
संक्रान्ति का अर्थ है, ‘सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण (जाना)’। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति रूप में जाना जाता है।
सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है, मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और नेपाल के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।
उत्तर भारत में इस पर्व को ‘मकर सक्रान्ति, पंजाब में लोहडी, गढ़वाल में खिचडी संक्रान्ति, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति’ कहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के दिन की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। सर्वविदित है कि पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छः माह पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है। शीत के कारण से ठिठुरते लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां के पर्व त्योहार का संबंध काफी कुछ कृषि पर निर्भर करता है। मकर संक्रांति ऐसे समय में आता है जब किसान रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसल, मक्का, गन्ना, मूंगफली, उड़द घर ले आते हैं। किसानों का घर अन्न से भर जाता है। इसलिए मकर संक्रांति पर खरीफ की फसलों से पर्व का आनंद मनाया जाता है।
मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होता है अर्थात् उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है जिससे उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा शीत की ऋतु होती है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना प्रारम्भ हो जाता है। अतएव इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। अतः मकर संक्रान्ति अंधकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि का आरंभ है।
समस्त जीवधारी (पशु, पक्षी व पेड़ पौधे भी) प्रकाश चाहते हैं। संसार सुषुप्ति से जाग्रति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है और अन्धकार अज्ञान का।
भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, इसलिए ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतवर्ष के लोग इस दिन सूर्यदेव की आराधना एवं पूजन कर, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
विश्व की 90% आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है अतः मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए उल्लास का दिन है। सम्पूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवतः मकर संक्रांति ही एकमात्र उत्सव है जो किसी स्थानीय परम्परा, मान्यता, विश्वास या किसी विशेष स्थानीय घटना से सम्बंधित नहीं है, बल्कि मकर संक्रांति एक ऐसी खगोलीय घटना है जो सम्पूर्ण भूलोक में नव स्फूर्ति और आनंद का संचार करती है। यद्यपि मकर संक्रांति सम्पूर्ण मानवता के उल्लास का पर्व है परंतु इसका उत्सव केवल हिन्दु समाज मनाता है क्योंकि विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और सर्वे भवन्तु सुखिनः की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है।
भगवद् गीता के अध्याय ८ में भगवान कृष्ण कहते हैं कि उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः।।
यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैया पर पड़े रहे थे। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी, इसीलिए आज के दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है जिसके बारे में मान्यता है कि –“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार”।
सच कह रहा हूँ मित्रों, आनेवाला परीक्षा पर्व हमें अत्यंत उत्साह से मनाना है। किस प्रकार मनाना है उसका विचार करें –
Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana (PMKVY) is the flagship scheme of the Ministry of Skill Development and Entrepreneurship (MSDE) implemented by National Skill Development Corporation (NSDC). The objective of this Skill Certification scheme is to enable Indian youth to take up industry relevant skill training that will help them in securing a better livelihood.
STT component imparted at PMKVY Training Centres (TC) is expected to benefit candidates of Indian nationality who are either school/college dropouts or unemployed. Apart from providing training according to the National Skills Qualification Framework (NSQF), TCs also impart training in soft skills, entrepreneurship, financial and digital literacy. Upon successful completion of assessment, candidates are provided placement assistance by Training Providers.
Individuals with prior learning experience or skills are assessed and certified under the RPL component of the scheme. Project Implementing Agencies (PIAs) such as Sector Skill Councils (SSCs) or any other agencies designated by MSDE/NSDC are being incentivised to implement RPL projects in any of the three models (RPL camps, RPL at employer’s premise and RPL centres). To address knowledge gaps, PIAs offer bridge courses to RPL candidates along with training on soft skills, job role related safety and hygiene practices.
The Special Projects component of PMKVY envisages creation of a platform that will facilitate trainings in special areas and/or premises of Government bodies, corporate or industry bodies, and training in special job roles not defined under the available Qualification Packs (QPs)/National Occupational Standards (NOS). Special Projects require some deviation from the short- term training guidelines under PMKVY for any stakeholder. A proposing stakeholder can be institutions of Central or State Government(s) autonomous body/statutory body or any other equivalent body or corporate who desires to provide training to candidates.